युवा सुभाष चंद्र बोस से जुड़ी घटना है। बात 1919 की है। सुभाष जी का आईसीएस का इंटरव्यू होने वाला था। वे आंखें बंद करके विवेकानंद जी और अरविंद घोष जी द्वारा बताई गई विधि से ध्यान करके खुद को शांत कर रहे थे।उस समय ये नौकरी का सबसे बड़ा पद माना जाता था। लंदन में पढ़ाई करके वे लिखित परीक्षा में पास हो चुके थे। उनके पिता भी चाहते थे कि सुभाष आईसीएस बने। सुभाष जी भी यही चाहते थे।
सुभाष जी की इंटरव्यू देने की बारी आई। इंटरव्यू लेने वाले अधिकारी अंग्रेज थे। अंग्रेजों को किसी भी भारतीय को ऊंचे पद पर जाता देखकर अच्छा नहीं लगता था। वे हर इंटरव्यू में भारतीयों की खिल्ली उड़ाते थे। अंग्रेजों को लगता था कि भारतीय रट्टू तोते होते हैं, इन्हें कोई ज्ञान नहीं है।
अंग्रेजों ने इंटरव्यू में सुभाष जी से एक प्रश्न पूछा, ‘ये जो ऊपर पंखा चल रहा है, इसमें कितनी पंखुड़ियां हैं?’
सुभाष जी बोले, ‘अगर मैं इस प्रश्न का सही उत्तर दे दूं तो क्या मेरा चयन निश्चित है? और आप जो भारतीयों के मामले में सोचते हैं, वह विचार बदल लेंगे?’
अंग्रेज बोले, ‘ठीक है, बताओ।’
सुभाष जी खड़े हुए और बिजली का स्वीच बंद किया, पंखा रुक गया तो पंखुड़ियां गिनकर बता दीं कि तीन पंखुड़ियां हैं।’
अंग्रेज भी मान गए कि सुभाष जी की तार्किक बुद्धि तेज है। उन्हें नौकरी भी मिल गई, लेकिन उन्होंने एक साल बाद ही इस नौकरी से इस्तीफा दे दिया था।
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सीख
सुभाष जी ने इंटरव्यू में जो त्वरित काम किया, उससे हमें ये समझना चाहिए कि जब हम ध्यान करते हैं, हमारा व्यक्तित्व भीतर से निखरता है। ध्यान की वजह से हम किसी भी परिस्थिति में किसी भी प्रश्न का उत्तर देने में समर्थ हो जाते हैं। अंग्रेजों ने भी नहीं सोचा था कि ये युवक इस ढंग से पंखे की पंखुड़ियां गिनेगा। काम क्या किया जा रहा है, ये ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है, महत्वपूर्ण ये है कि काम करने का तरीका कैसा है। काम करने के तरीके से काम ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है।