एस्ट्रो डेस्क : धार्मिक ग्रंथों में सप्ताह का हर दिन किसी न किसी भगवान को समर्पित है। हर दिन किसी भगवान को समर्पित होने के पीछे एक कथा है। गुरुवार का दिन भगवान विष्णु को समर्पित है। कहते हैं बृहस्पतिवार के दिन भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा-अर्चना आदि करने से भक्तों को जीवन के सभी संकटों से छुटकारा मिलता है। भगवान विष्णु को श्री हरि कहकर भी पुकारा जाता है। लेकिन क्या आप इसके पीछे का कारण जानते हैं। नहीं तो चलिए बताते हैं भगवान विष्णु को श्री हरि कहने के पीछे का कारण और श्री हरि की पूजा गुरुवार के दिन ही क्यों की जाती है?
भगवान विष्णु को क्यों कहते हैं श्री हरि?
ग्रंथों में कहा गया है ‘हरि हरति पापानि’ यानी भगवान हरि भक्तों के जीवन के सभी पाप हर लेते हैं। बता दें कि हरि का अर्थ होता है हर लेने वाला या दूर करने वाला। शास्त्रों में भगवान विष्णु को लेकर कहा गया है कि जो भक्त सच्चे दिल से भगवान की पूजा और उपासना करता है उसे जीवन के सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। इतना ही नहीं, बड़े से बड़ा संकट भी श्री हरि हर लेते हैं। इसलिए भक्त उन्हें हरि या श्री हरि के नाम से पुकारते हैं और श्राद्धापूर्वक उनकी अराधना करते हैं।
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गुरुवार के दिन की जाती है भगवान विष्णु की पूजा
पौराणिक मान्यता के अनुसार कहते हैं कि पक्षियों में सबसे विशाल पक्षी गरुड़ भगवान विष्णु का वाहन है। मान्यता है कि गरुड़ ने भगवान विष्णु को कठिन तपस्या से प्रसन्न किया था। इसके बाद गरुड की तपस्या देखते हुए उन्होंने गरुड़ को अपने वाहन के रूप में स्वीकार कर लिया था। मान्यता है कि गुरु का अर्थ होता है भारी। वहीं, गरुड़ भी पक्षियों में सभी में भारी होता है। गरुड़ की सफल तपस्या के कारण ही गुरुवार का दिन भगवान विष्णु को समर्पित हो गया। वहीं, दूसरी ओर कुछ विद्वानों का कहना है कि गुरु बृहस्पति भगवान विष्णु का ही स्वरूप होने के कारण गुरुवार के दिन श्री हरि की पूजा की जाती है।