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जीवन मंत्र : गुरु और शिष्य दोनों ही योग्य हों, तभी एक दूसरे का भला कर पाते हैं

जीवन तंत्र डेस्क : कथा- कार्तिकेय स्वामी शिव के ज्येष्ठ पुत्र हैं। उनका जन्म सरकंडा के जंगल में हुआ था। एक विशेष प्रकार की घास को ईख कहते हैं। हिमालय और गंगा भी शिव के अंश को संभाल नहीं पाए। फिर गंगा शिव के हिस्से को ईख के जंगल में छोड़ दें। वहीं कार्तिकेय का जन्म हुआ था।

कई महिलाओं ने एक बच्चे की परवरिश की है। एक दिन विश्वामित्र उस वन में आए। कार्तिकेय की ऊर्जा को देखकर वे उनकी प्रशंसा करने लगे। लड़का तारीफ से खुश हुआ और कहा, ‘मुझे लगता है कि तुम शिव की इच्छा से यहां आए हो। आप मेरे वैदिक कर्मकांडों के अनुसार कर सकते हैं और आज से आप एक पुजारी बन जाते हैं जो मुझे प्रसन्न करेगा। आप सभी की पूजा होगी।विश्वामित्र ने कहा, सुनो, मैं ब्राह्मण नहीं हूं। लोग मुझे क्षत्रिय ब्राह्मण सेवक विश्वामित्र के नाम से जानते हैं। बताओ अब तुम कौन हो।’

बालक कार्तिकेय ने अपना परिचय दिया और फिर उसी गुरु विश्वामित्र से कहा, जिनसे उन्होंने अपनी वेद-संस्कृति प्राप्त की थी, ‘मेरे आशीर्वाद से आप ब्रह्मर्षि और वशिष्ठ होंगे। मुनि मुनि भी आपका सम्मान करेंगे।’

पाठ – विश्वामित्र उस बालक की ऊर्जा पर मोहित हो गए और फिर उस बालक ने उन्हें गुरु बना दिया। बाद में उसी बालक ने भी अपने गुरु को आशीर्वाद दिया। यहां संदेश यह है कि यदि कोई शिष्य योग्य है, तो उसे अपने गुरु की भलाई के लिए काम करना चाहिए। यह एक गुरु और शिष्य के बीच के अद्भुत रिश्ते की कहानी है। यदि आप इस रिश्ते का सफल परिणाम चाहते हैं, तो गुरु और शिष्य दोनों को योग्य होना चाहिए।

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