डिजिटल डेस्क : हिंदू नववर्ष के प्रथम माह चैत्र का धार्मिक दृष्टि से विशेष महत्व है। इस माह कई त्योहार मनाए जाते हैं। चैत्र मास की पूर्णिमा चित्रा नक्षत्र में होती है। इसी कारण इस माह का नाम चैत्र पड़ा। मान्यता है कि सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा ने चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से ही सृष्टि की रचना आरंभ की। इस माह बसंत ऋतु का समापन होता है और ग्रीष्म ऋतु आरंभ होती है।
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को भगवान श्री हरि विष्णु ने दशावतार में से पहला मत्स्य अवतार लेकर प्रलयकाल में मनु की नौका को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया था। प्रलयकाल समाप्त होने पर मनु से ही नई सृष्टि की शुरुआत हुई। मान्यता है कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से सतयुग का आरंभ हुआ था। चैत्र मास के आरंभ में नवरात्रि आती हैं। चैत्र मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को महाराष्ट्र में उगादि कहा जाता है और इसी दिन गुड़ी पड़वा का त्योहार मनाया जाता है। इस मास में शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि को भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित गणगौर का उपवास किया जाता है। चैत्र शुक्ल की नवमी को भगवान श्रीराम की जयंती मनाई जाती है। इस माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी को कामदा एकादशी कहते हैं। चैत्र माह में शीतला माता के साथ नीम की पूजा की जाती है। शीतला माता को रोगाणुओं का नाशक माना गया है। चैत्र कृष्ण एकादशी को पापमोचनी एकादशी आती है। इस दिन श्रद्धा के साथ व्रत रखने से सारे पाप धुल जाते हैं। चैत्र मास की पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है। इस दिन लक्ष्मी-नारायण का व्रत रखा जाता है और भगवान सत्यनारायण की कथा सुनी जाती है। यश और पद, प्रतिष्ठा चाहते हैं तो चैत्र मास में सूर्यदेव की उपासना करें। शक्ति और ऊर्जा प्राप्त करने के लिए चैत्र मास में मां दुर्गा की उपासना शुभ है। इस माह अनाज का सेवन कम करना चाहिए। पानी अधिक पीना चाहिए। इस माह गुड़ का सेवन नहीं करना चाहिए। इस माह चना खाना अच्छा माना जाता है। इस माह से बासी भोजन करना बंद कर देना चाहिए। इस माह में सूर्यदेव और देवी मां की उपासना करना चाहिए। चैत्र माह में लाल फलों का दान करना उत्तम माना जाता है। इस माह पेड़ पौधों में नियमित रूप से जल दें।
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