हिंदू धर्म में भगवान भोलेनाथ अत्यंत लोकप्रिय देवताओं में से एक हैं. सोमवार को भगवान शिव (Lord Shiva) की आराधना की जाती है. उनको प्रसन्न करने के लिए सोमवार (Monday) का व्रत रखा जाता है. इस व्रत में विधि विधान से पूजा अर्चना की जाती है. जिसमें भगवान शिव की प्रिय सामग्री उन्हें अर्पित करने का विधान है. भगवान शिव को सबसे ज्यादा प्रिय बेल पत्र है जिसे संस्कृत में बिल्वपत्र भी कहा जाता है. भगवान शिव को बेल पत्र अर्पित करने से उन्हें शीतलता प्राप्त होती है. सनातन धर्म में प्रकृति (Nature) के प्रति कृतज्ञता और स्नेह की भावना सर्वोपरि है. इसीलिए शास्त्रों में फूल पत्तियों को तोड़ने के कुछ नियम उल्लेखित हैं. ऐसे ही बेल पत्र को तोड़ने का भगवान शिव को अर्पित करने का क्या नियम है आइए जानते हैं.
मान्यता है कि बेल पत्र और जल से भगवान शंकर का मस्तिष्क शीतल रहता है. पूजा में इनका प्रयोग करने से वे बहुत जल्द प्रसन्न होते हैं. भगवान शिव को बेल पत्र अर्पित करने और इसे तोड़ने के कुछ खास नियमों का पालन करना जरूरी होता है.
बेल पत्र तोड़ने के नियम
मान्यता के अनुसार चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी और अमावस्या तिथि, संक्रांति के समय और सोमवार को बेल पत्र नहीं तोड़ना चाहिए.
भगवान शिव को बेल पत्र अत्यंत प्रिय है, इसलिए इन तिथियों या वार से पहले तोड़ी गई बेल पत्र चढ़ाना शुभ माना जाता है.
बेल पत्र को लेकर शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि यदि नया बेल पत्र न मिले, तो किसी दूसरे के चढ़ाए हुए बेल पत्र को भी धोकर कई बार इस्तेमाल किया जा सकता है.
शाम होने के बाद बेल पत्र क्या किसी भी वृक्ष को हाथ नहीं लगाना चाहिए.
टहनी से एक-एक कर बेल पत्र ही तोड़ना चाहिए. पूरी टहनी को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए.
बेल पत्र तोड़ने से पहले और तोड़ने के बाद मन ही मन प्रणाम कर लेना चाहिए.
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