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शुरुआत में सत्य बोलने में दुविधा होती है, लेकिन बाद में सुविधा हो जाती है

कहानी – एक बार ब्रह्मा जी और विष्णु जी में युद्ध शुरू हो गया कि श्रेष्ठ कौन है? दोनों एक-दूसरे पर शस्त्रों से प्रहार करने लगे तो देवता घबरा गए। सभी देवता शिव जी के पास पहुंचे। देवताओं ने शिव जी से कहा कि आपको इन्हें रोकना होगा।

शिव जी एक अग्नि स्तंभ के रूप में ब्रह्मा-विष्णु के बीच प्रकट हो गए। दोनों ने तय किया कि जो इस स्तंभ के रहस्य को जान लेगा, वही श्रेष्ठ होगा। हंस का रूप लेकर ब्रह्मा जी स्तंभ के ऊपरी भाग में गए और सुअर का रूप लेकर विष्णु जी नीचे वाले भाग में गए।

कुछ समय बाद विष्णु जी थक गए तो लौट आए, लेकिन ब्रह्मा जी ने एक योजना बनाई। उन्होंने वहां केतकी के फूल को देखा। केतकी पुष्प से ब्रह्मा जी ने कहा, ‘तू बाहर निकलकर झूठ बोल देना कि मैंने इस स्तंभ का रहस्य जान लिया है।’

केतकी पुष्प ने कहा, ‘लेकिन झूठ बोलना तो सही नहीं है।’

ब्रह्मा जी ने कहा, ‘आपदा में, संकट के समय अगर झूठ बोल दिया जाए तो दोष नहीं लगता है। इस समय हम दोनों संकट में हैं। बाहर निकल तू कह देना कि ब्रह्मा को रहस्य मालूम हो गया है, ऐसा करने से मैं विष्णु से श्रेष्ठ बन जाऊंगा।’

अपने पक्ष में झूठ को सत्य बनाने की आदत पुराने समय से लोगों में है, लेकिन शिव जी ब्रह्मा का झूठ पकड़ लिया और उनका पांचवां सिर काट दिया। शिव जी ने शाप दिया कि अब से तुम्हारी पूजा नहीं होगी। जब विष्णु जी ने निवेदन किया तो शिव जी ने कह दिया कि यज्ञ में ब्रह्मा गुरु के रूप में स्थापित होंगे।

केतकी पुष्प से शिव जी ने कहा, ‘अब से तू मेरी पूजा में वर्जित रहेगा। झूठ बोलना किसी भी स्थिति में सही नहीं है।’

सीख – कैसी भी विपरीत स्थिति आए, कितना भी नुकसान हो रहा है, हमें झूठ नहीं बोलना चाहिए। सत्य में पहले तो दुविधा होती है, लेकिन बाद में सुविधा हो जाती है। जब हम सच बोलते हैं तो इस बात से बेखबर हो जाते हैं कि हमने कब क्या बोला था। झूठ बोलने पर हमें याद रखना होता है कि हमने किसे क्या कहा था। इसलिए हमेशा सच ही बोलें, भगवान को भी सच बोलने ही प्रिय हैं।

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