Homeधर्मकैसे करें संतोषी माता और वैभवलक्ष्मी का व्रत, जानिए पूजन विधि

कैसे करें संतोषी माता और वैभवलक्ष्मी का व्रत, जानिए पूजन विधि

शुक्रवार का दिन हमारे धर्म और मान्यताओं में बेहद खास दिन माना गया है. इस दिन माता संतोषी और वैभव की देवी महालक्ष्मी की पूजा होती है. मां संतोषी और माता वैभवलक्ष्मी की पूजन की विधि और इनसे जुड़ी मान्यताएं और कथाएं दोनों ही अलग-अलग हैं. आप शुक्रवार को माता संतोषी के व्रत का पालन करना चाहते हैं तो यहां दिए गए विधि को जान लें.

संतोषी माता पूजन और व्रत विधि :-

सुबह उठकर स्नान करें और घर को साफ-सुथरा रखें.
गंगाजल से पूजा घर को साफ कर माता संतोषी की प्रतिमा अथवा तस्वीर को स्थापित कर लें.
पूजन की सभी सामग्री इकट्ठा कर लें और एक कलश में जल भर कर रख लें.
जल से भरे कलश के ऊपर गुड़ और चने से भरा दूसरा पात्र रख लें.
अब धूप-दीव, नैवेद्य आदि से माता की पूजा करें और कथा सुनें.
कथा के बाद अब माता की आरती कर लेनी है.

चने और गुड़ के प्रसाद को बांटें.

अब जल भरे पात्र से जल निकाल कर पूरे घर में छिड़क दें और बाकी बचा जल तुलसी के पौधे में डाल दें.
इस व्रत में एक बात का खास ख्याल रखना है, व्रत में कुछ भी खट्टा न खाएं, कोशिश करें कि परिवार में भी इस दिन कोई खट्टी चीजों का सेवन न करे.

इस तरह करें उद्यापन
16 शुक्रवार मां संतोषी का नियमित उपवास रखने के बाद अंतिम शुक्रवार को उद्यापन करें. अंतिम शुक्रवार को भी हर बार की तरह पूजा करना है और इसके बाद आठ बालकों को खीर और पूरी का प्रसाद खिलाना है. बालकों को दक्षिणा और केले का प्रसाद जरूर दे. इसके बाद आप खुद भी प्रसाद खाएं.

ओमिक्रॉन से देश में दूसरी मौत,महाराष्ट्र के बाद राजस्थान में 73 वर्षीय व्यक्ति की मौत
वैभवलक्ष्मी पूजन और व्रत विधान

शुक्रवार को विवाहित महिलाएं माता लक्ष्मी की पूजा करती है. इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा के लिए सफेद या फिर लाल रंग के फूल के साथ ही इन्ही दो रंगों में से एक रंग का चंदन लें और उससे मां की पूजा करें.
इस दिन चावल और दूध से खीर तैयार कर मां को भोग लगाएं.
मां वैभवलक्ष्मी की कथा का श्रवण करें.

इस तरह करें उद्यापन
आपने जितने शुक्रवार का संकल्प किया है उतने दिन जैसे 11 या 21 शुक्रवार के उपवास के बाद अंतिम शुक्रवार को विधि पूर्वक मां की उपासना करें. इसके बाद 7 या 9 महिलाओं को खीर-पूरी का भोजन कराएं. इसके साथ ही उन महिलाओं में आपको व्रत कथा की किताब और प्रसाद बांटना है, इसके बाद खुद भी खीर का प्रसाद खाना है.

 

- Advertisment -

Recent Comments

Exit mobile version