कथा – जब श्रीराम वनवास यात्रा पर थे तब उन्हें असुर और शशिरा भी मिल रहे थे। उसने राक्षसों को मार डाला और उसके साथ अपने आश्रम में रहने लगा।
एक बार कई ऋषि-मुनि श्री राम के साथ उनकी यात्रा में शामिल हुए। सभी उनके साथ चल रहे थे और रास्ते में श्रीराम की नजर एक अजीब पहाड़ी पर पड़ी। श्री राम ने ऋषियों से पूछा, ‘यह कैसा पर्वत है?’
ऋषियों ने कहा कि यह हड्डियों का ढेर है। ये हड्डियाँ हैं ऋषि, रावण के दैत्य प्रतिदिन यहाँ आकर आश्रम को नष्ट कर देते हैं। साधुओं को मार कर खाया जाता है। यह उसकी हड्डियों का ढेर है।
श्रीराम ने जब यह दृश्य देखा तो सोचा ऐसी यातना? फिर उसने सभी से कहा, ‘मैं आप सभी को विश्वास दिलाता हूं कि मैं इस दुनिया को राक्षसों के हाथों से मुक्त कर दूंगा।’उसके बाद वह कई ऋषियों के आश्रम में जाते और सभी को आश्वस्त करते और सभी को सुख देते।
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पाठ – श्रीराम के जीवन में अनेक समस्याएँ आईं। श्रीराम खुद नाराज थे। वह जंगल में भटक रहा था। उनका राज्याभिषेक रद्द कर दिया गया था, उनकी पत्नी सीता का हरण रावण ने किया था, लेकिन ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियों में भी दूसरों को सुख देना उनका स्वभाव था। अधिकांश लोग इसके विपरीत करते हैं, अपना दुःख दूसरे को देते हैं, जब ऐसा नहीं करना चाहिए। श्री राम से सीखिए अगर हमारे जीवन में परेशानी है तो ये परेशानी दूसरों को ना दें। एक को दूसरे को सुख देना चाहिए