झालावाड़ : हरिमोहन चोडॉवत: झालावाड़ जिला अस्पताल में सरकारी इलाई लेने आ रहे मरीजों को निजी अस्पतालों के दलालों द्वारा अपने अस्पतालों में ले जा रहे हैं इन दलालों को साथ दे रहे हैं.जिला अस्पताल के ही बेकार में जो महज कुछ दामों में बिक कर परेशानी से जूझ रहे मरीजों को निजी अस्पतालों के जाल में उलझा देते हैं।ऐसा ही एक मामला उस समय सामने आया जब जिला अस्पताल से दलाल के मार्फत निजी अस्पताल पहुंचे एक मरीज के बेटे के साथ निजी अस्पताल संचालक ने लाठियों से मारपीट कर डाली और मामला झालावाड़ कोतवाली पहुंच गया।
मरीज के पुत्र पंकज राठौर निवासी डोंगरगांव ने बताया कि वह उसके पिता राजेंद्र राठौड़ को कूल्हे की हड्डी के प्रत्यारोपण करवाने हेतु जिला अस्पताल लाया था. जैसे ही काउंटर पर गया और भर्ती की फाइल बनवाने लगा तो उसके पिता राजेंद्र राठौड़ के नंबर पर फोन आया जिस ने कहा कि चिकित्सक से उनकी बात हो गई है और उनका इलाज जिला अस्पताल में नहीं एलएन हॉस्पिटल में होगा. जहां क सारी सुविधाएं मिलेगी थोड़ी देर में चेतन शर्मा नाम का युवक जिला अस्पताल आया और मरीजों को एलएन हॉस्पिटल लिख गया वहां बाद में मरीज के परिजन जीतमल राठौड़ भी आया और उसने निजी अस्पताल संचालक से बात कर बताया कि मरीज गरीब है.
मरीजों की जान से खिलवाड़
आपको कोई राशि नहीं दे पाएंगे, लेकिन अस्पताल संचालक ने उनसे भी निशुल्क उपचार की बात कही लेकिन जीत मन के वहां से जाने के बाद ही उसने मरीज को वहां से भगा दिया जब मरीज वापस जिला अस्पताल पहुंचा तो वहां 20 को भर्ती करने से इसलिए मना किया कि जो तुम्हें बुला कर ले गया था .वही तुम्हें यहां भर्ती करेगा। मैं मरीज का पुत्र पंकज राठौड़ जब अस्पताल पहुंचा तो वहां अस्पताल संचालक वरुण व्यास और उनके स्टाफ ने उन्हें उसे कमरे में बंद कर लाठियों से पीटा। जिसके निशान भी उसके शरीर पर साफ दिखाई दे रहे।
ऐसे में पीड़ित पंकज राठौर ने झालावाड़ कोतवाली पहुंचकर अस्पताल संचालक व दलाल के खिलाफ मामला दर्ज करवाया है।पुलिस इसमें आगे क्या कार्रवाई करेगी यह तो देखना होगा लेकिन जिला अस्पताल के कार्मिकों की मिलीभगत व दलालों के माध्यम से निजी अस्पताल संचालकों द्वारा जिला अस्पताल के मरीजों को अपने अस्पतालों में बुलाने का खेल उजागर हो गया है। अब देखना होगा कि जिला अस्पताल प्रशासन ऐसे दलाल कार्मिकों के खिलाफ क्या कार्रवाई करता है।
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पूरे मामले में सवाल यह खड़ा होता है कि जब मरीज रजिस्ट्रेशन काउंटर पर ही अपनी फाइल बनवा रहा है तो वहां से मरीज के नंबर निजी अस्पताल के पास कैसे पहुंचे ऐसे में कहीं न कहीं चिरंजीवी योजना में लगे पूर्व कार्मिकों पर भी निजी अस्पताल का एजेंट होने का शक है तो वही रजिस्ट्रेशन काउंटर पर बैठे कार्मिकों द्वारा भी मरीजों की सूचना अस्पतालों तक पहुंचाने का शक गहरा गया है। एक चिरंजीवी योजना से जुड़े लोगों से भी निजी अस्पताल संचालक मोटी राशियां वसूल रहे हैं लेकिन उपचार हेतु परेशान मरीज व पीड़ित इन बातों को समय रहते उजागर नहीं कर पाते।