एस्ट्रो डेस्क : कल मार्गशीर्ष मास में कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को भैरव जयंती मनाई जाती है। इस दिन व्रत करने से सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं। ऐसा माना जाता है कि भैरव प्रदोष युग की कृष्णपक्ष अष्टमी में मार्गशीर्ष के महीने में भगवान काल का जन्म हुआ था। इस तिथि को भैरव अष्टमी के नाम से जाना जाता है।
भगवान काल भैरव की पूजा करने से अकाल मृत्यु के भय से मुक्ति मिलती है। यह तिथि भैरव की पूजा के लिए विशेष मानी जाती है। इस दिन पूजा और उपवास का विशेष महत्व है। भैरव की पूजा करने से भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। उनका पीछा करना बेहद कठिन माना जाता है। इनकी उपासना में सत्यता और मन की एकाग्रता का पूरा ध्यान रखना होता है। कालाष्टमी के दिन पूजा करने से शत्रु और नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है। काल भैरव की शरण में जाने वाले देवता निडर हैं। भगवान भैरव की पूजा से साहस मिलता है। इनकी पूजा करने से शनि का प्रकोप शांत होता है। रविवार और मंगलवार को उनकी पूजा अत्यंत फलदायी मानी जाती है। इस व्रत में रात को उठकर अल्लाह का स्मरण करें। भजन कीर्तन के साथ भैरव कथा और आरती कहें। कालभैरव को प्रसन्न करने के लिए इस दिन काले कुत्ते को खाना खिलाना शुभ माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि काल भैरव की पूजा और उपवास करने से लोग बड़े पापों से मुक्त हो जाते हैं। इस दिन भैरव मंदिर में सुगंधित अगरबत्ती जलाएं। पीला झंडा चढ़ाएं। श्री भैरब दस दिशाओं से अपने भक्तों की रक्षा करते हैं। कालभैरव अष्टमी की शाम को मंदिर में भैरव के सामने चौमुखी दीपक जलाया जाता है। फूल, इमरती, जलेबी, उड़द, पान, नारियल भगवान को अर्पित करें।
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