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जानें गणेश जी को पूजा में दूर्वा चढ़ाने की कथा, महत्व और नियम

हिन्दू धर्म में सभी देवी देवताओं की पूजा (Worship) करने की कोई न कोई खास विधि (Method) होती है, और कुछ ऐसी चीज़े भी होती हैं जो उन देवी देवताओं को बेहद पसंद होती है. उनके बिना पूजा पाठ अधूरा माना जाता है. उन्हीं में से एक है प्रथम पूज्य श्री गणेश जी (Lord Ganesha), वैसे तो भगवान गणेश खाने पीने के बेहद शौकीन हैं. कई सारी चीज़े जैसे लड्डू, मोदक भगवान गणेश को बेहद पसंद हैं, लेकिन इसके अलावा एक चीज़ और है जिसके बिना भगवान गणेश की पूजा अधूरी मानी जाती है और वो है दूर्वा. भगवान गणेश की पूजा में दूर्वा अर्पित करना जरुरी माना गया है. आइए जानते हैं ऐसा क्यों?

पौराणिक कथा के अनुसार
धार्मिक पुराणों में गणेशजी को दूर्वा चढ़ाने को लेकर कुछ कथाएं मिलती है. एक कथा के अनुसार एक समय अनलासुर नामक एक राक्षस हुआ करता था. उसने पृथ्वी पर हर जगह हाहाकार मचा रखा थी. वह राक्षस अपनी भूख शांत करने के लिए ऋषि मुनियों को निगल जाता था. जब राक्षस अनलासुर का आतंक बहुत बढ़ गया और देवता भी उसको रोकने में असमर्थ हो गए, तब सभी ऋषि-मुनि और देवतागण एकत्र होकर पार्वतीनन्दन के पास पहुंचे और उनसे अनलासुर को रोकने के लिए कहा, उनकी बात सुनकर गणेश जी को बड़ा क्रोध आया और राक्षस अनलासुर के साथ युद्ध करते करते वे उस राक्षस को ही निगल गए. जब गणेशजी ने राक्षस को निगल लिया इससे उनके पेट में जलन होने लगी. तब कश्यप ऋषि ने भगवान गणेश की परेशानी को दूर करने के लिए उन्हें 21 दूर्वा की गांठ खाने को दी. जिसके बाद उनकी जलन शांत हुई. इसी के बाद से माना जाने लगा की भगवान गणेश को दूर्वा चढ़ाने से वे जल्द प्रसन्न होते हैं.

एक अन्य कथा
पार्वतीनन्दन को दूर्वा चढ़ाने को लेकर ग्रंथों में एक और कथा प्रचलित है. जिसके अनुसार एक बार देवर्षि नारद ने भगवान गणेश को सूचना दी कि पृथ्वी पर महाराज जनक को अहंकार आ गया है. वे स्वयं को तीनों लोकों के स्वामी मानने लगे हैं. नारद जी की बात सुनकर गणेश जी महाराज जनक का अहंकार तोड़ने के लिए ब्राम्हण का वेश बना कर मिथिला पहुंचे, और राजा के सामने जाकर कहा की मैनें इस नगरी की भव्यता के बारे में काफी सुना है. मैं वही देखने यहां आया हूँ और बहुत दिनों से भूखा हूं, महाराज जनक ने ब्राम्हण को भोजन कराने का आदेश दिया. भगवान गणेश भोजन करने बैठे और भोजन करते करते वे सारे महल और नगर का भोजन खा गए, लेकिन फिर भी उनकी भूख शांत नहीं हुई.

इस बात की जानकारी महाराज जनक तक पहुंची और उन्होंने ब्राम्हण गणेश से इस बात के लिए क्षमा मांगी. तब गणेश जी वहां से उठे और एक गरीब ब्राम्हण के घर जाकर भोजन करने की बात कही. तब गरीब ब्राम्हण की पत्नी ने भगवान गणेश को भोजन में दूर्वा घांस दी जिसे खाते ही भगवान गणेश की भूख शांत हो गई. वे पूरी तरह से तृप्त हो गए, इसके बाद भगवान गणेश ने उन दोनों पति-पत्नी को मुक्ति का आशीर्वाद दिया तब से ही भगवान गणेश को दूर्वा चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई.

दूर्वा का महत्व
दूर्वा को दूब, अमृता, अनंता, महौषधि कई नामों से भी जाना जाता है. सनातन धर्म में कोई भी मांगलिक कार्य बिना हल्दी और दुर्वा के पूरा नहीं माना जाता.

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दूर्वा चढ़ाने के नियम
भगवान गणेश को एक खास तरीके से दूर्वा चढ़ाई जाती है. पहले दूर्वा का जोड़ा बनाया जाता है. फिर उसे गणेश जी पर चढ़ाया जाता है. 22 दूर्वा को एक साथ जोड़ने पर दूर्वा के 11 जोड़े तैयार हो जाते हैं. इन 11 जोड़ों को गणेश जी पर चढ़ाना चाहिए.
दुर्वा किसी मंदिर के बगीचे या साफ जगह पर उगी हुई ही लेना चाहिए.
जहां गंदा पानी बहता हो, वहां की दूर्वा भूलकर भी न लें.
दूर्वा चढ़ाने से पहले साफ पानी से इसे धो लेना चाहिए.

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