मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा से एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है। यहां जहरीले कफ सिरप के चलते एक और बच्ची की मौत हुई है। मध्य प्रदेश में कॉल्ड्रिफ कफ सिरप के चलते होने वाली मौतों की संख्या अब 10 पहुंच गई है। बच्ची नागपुर में बीते सप्ताह से भर्ती थी। उसकी किडनी फेल होने की वजह से उसकी मौत हो गई। बच्ची की पहचान परासिया क्षेत्र के बढ़कुही निवासी योगिता ठाकरे के रूप में हुई है।
अब तक 10 बच्चों की हो चुकी है मौत
इस एक कफ सिरप की वजह से मध्य प्रदेश में अब तक 10 बच्चों की मौत हो चुकी है। छिंदवाड़ा में 4 सितंबर से शुरू हुआ मासूम बच्चों की मौत का सिलसिला 4 अक्टूबर तक नहीं थमा है। इस मामले के सामने आने के बाद मध्य प्रदेश समेत पूरे देश में हड़कंप मच गया है। जिन बच्चों की मौत हुई, उनके परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल है। सबसे बड़ा सवाल है कि इस जहरीले कफ सिरप के बारे में इतनी देरी से क्यों पता लगा। इसने पहले भी ना जाने कितने लोगों को अपना शिकार बनाया होगा।
कफ सिरप की बिक्री पूरे मध्यप्रदेश में बैन
जहरीले कफ सिरप की वजह से हो रही मौतों को ध्यान में रखते हुए मध्य प्रदेश की मोहन यादव सरकार ने बड़ा फैसला लिया है। सीएम ने इस कफ सिरप की बिक्री को पूरे मध्य प्रदेश में बैन कर दिया है। मोहन यादव ने एक्स पर पोस्ट करते हुए कहा, “छिंदवाड़ा में कॉल्ड्रिफ कफ सिरप के कारण हुई बच्चों की मृत्यु अत्यंत दुखद है। इस कफ सिरप की बिक्री को पूरे मध्यप्रदेश में बैन कर दिया है। सिरप को बनाने वाली कंपनी के अन्य प्रोडक्ट की बिक्री पर भी बैन लगाया जा रहा है।
सिरप बनाने वाली फैक्ट्री कांचीपुरम में है। इसलिए घटना के संज्ञान में आने के बाद राज्य सरकार ने तमिलनाडु सरकार को जांच के लिए कहा था। रिपोर्ट के आधार पर कड़ा एक्शन लिया गया है। बच्चों की दुखद मृत्यु के बाद स्थानीय स्तर पर कार्रवाई चल रही थी। राज्य स्तर पर भी इस मामले में जांच के लिए टीम बनाई गई है। दोषियों को किसी भी कीमत पर बख्शा नहीं जाएगा।
कफ सिरप के सैंपल जांच में क्या मिला
इस बीच, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने पाया कि मध्य प्रदेश में परीक्षण किए गए किसी भी सिरप के नमूने में डायथिलीन ग्लाइकॉल या एथिलीन ग्लाइकॉल नहीं था। इन दोनों तत्वों से किडनी को गंभीर नुकसान हो सकता है। स्वास्थ्य मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले डीजीएचएस ने परामर्श में कहा कि आमतौर पर 5 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए कफ सिरप की सिफारिश नहीं की जाती है।
इसमें कहा गया कि वृद्ध लोगों के लिए इनका उपयोग सावधानीपूर्वक गहन निगरानी, उचित खुराक का कड़ाई से पालन आदि पर आधारित होना चाहिए। बच्चों में गंभीर खांसी की बीमारियां अधिकतर स्वतः ही ठीक हो जाती हैं और अक्सर दवाइयों के बिना ठीक हो जाती हैं। परामर्श में सभी स्वास्थ्य सेवा केंद्रों को कहा गया कि वे ठीक से तैयार उत्पादों की खरीद और वितरण सुनिश्चित करें।
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