देश-दुनिया में मनाया जाने वाला होली (Holi) पर्व रंग और उमंग के लिए जाना जाता है. इस पावन पर्व को सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह से ने एक नए ढंग से मनाने की पंरपरा शुरु की थी, जो आज इस बात का बात का प्रतीक बन गया है कि जीवन से जुड़े सारे रंग और सच्चा आनंद परमात्मा के बगैर अधूरे हैं. सही कहें तो संस्कृति, पंरपरा और आध्यात्मिकता का संगम है होला मोहल्ला (Hola Mohalla). होली को होला मोहल्ला के रूप में मनाने की शुरूआत वर्ष 1680 में किला आनन्दगढ़ साहिब में गुरु गोविन्द सिंह जी ने स्वयं की थी. जिसका मुख्य उद्देश्य सिख (Sikh) समुदाय को तन और मन से मजबूत बनाते हुए उनमें विजय और वीरता के जज्बे को दृढ़ करना था. आइए रंग और शौर्य के इस पावन पर्व के बारे में विस्तार से जानते हैं.
इस तरह हुई होला मोहल्ला की शुरुआत
होला मोहल्ला पर्व की शुरुआत से पहले होली के दिन एक-दूसरे पर फूल और फूल से बने रंग आदि डालने की परंपरा थी लेकिन गुरु गोविंद सिंह जी ने इसे शौर्य के साथ जोड़ते हुए सिख कौम को सैन्य प्रशिक्षण करने का आदेश दिया. उन्होंने होला मोहल्ला की शुरुआत करते हुए सिख समुदाय को दो दलों में बांट कर एक-दूसरे के साथ छद्म युद्ध करने की सीख दी. जिसमें विशेष रूप से उनकी लाडली फौज यानि कि निहंग को शामिल किया गया जो कि पैदल और घुड़सवारी करते हुए शस्त्रों को चलाने का अभ्यास करते थे. इस तरह तब से लेकर आज तक होला मोहल्ला के पावन पर्व पर अबीर और गुलाल के बीच आपको इसी शूरता और वीरता का रंग देखने को मिलता है.
कब मनाया जाता है होला मोहल्ला
होला मोहल्ला हर साल चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से चैत्र कृष्ण षष्ठी तिथि तक आनंदपुर साहिब में मनाया जाता है. छह दिवसीय यह पावन पर्व होला मोहल्ला तीन दिन गुरुद्वारा कीरतपुर साहिब और तीन दिन तख्त श्री केशगढ़ साहिब आनन्दपुर साहिब में पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाया जाता है.
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ऐसे मनाया जाता है होला मोहल्ला उत्सव
हर साल देश-विदेश से बड़ी संख्या में लोग होला मोहल्ला पावन पर्व में शामिल होने के लिए आनंदपुर साहिब पहुंचते हैं. इस पावन पर्व की शुरुआत विशेष दीवान में गुरुवाणी के गायन से होता. होला मोहल्ला के दिन श्रीकेसगढ़ साहिब में पंज प्यारे होला मोहल्ला की अरदास करके आनंदपुर साहिब पहुंचते हैं. इस दिन आपको यहां पर तमाम तरह के प्राचीन एवं आधुनिक शस्त्रों से लैस निंहग हाथियों और घोड़ों पर सवार होकर एक-दूसरे पर रंग फेंकते हुए दिख जाएंगे. इस दौरान आपको यहां पर तमाम तरह के खेल जैसे घुड़सवारी, गत्तका, नेजाबाजी, शस्त्र अभ्यास आदि देखने को मिलेंगे. आनंदपुर साहिब के होला मोहल्ला में आपको न सिर्फ शौर्य का रंग को देखने को मिलेगा, बल्कि यहां पर लगने वाले तमाम छोटे-बड़े लंगर में स्वादिष्ट प्रसाद भी खाने को मिलेगा. जिसमें आपको हर छोटा-बड़ा शख्स लोगों की सेवा करता दिख जाएगा.