सम्भल के चंदौसी में “प्रथम स्वतंत्रता संग्राम और हिंदी साहित्य” का हुआ आयोजन

सम्भल

सम्भल : सरफराज़ अंसारी : जनपद सम्भल के चंदौसी में उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान एवं संस्कार भारती संभल के संयुक्त तत्वाधान में आजादी के महोत्सव के अवसर पर “प्रथम स्वतंत्रता संग्राम और हिंदी साहित्य” विषय पर संगोष्ठी तथा काव्य गोष्ठी का गौशाला रोड स्थित यदुवंगशी गार्डन में हुआ आयोजन।कार्यक्रम का शुभारंभ माँ सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित एवम पुष्प अर्पित करके मुख्य अतिथि उ.प्र.भाषा संस्थान के अध्यक्ष डॉ राजनारायण शुक्ल,विशिष्ट अतिथि,उ.प्र. हिंदी संस्थान के निदेशक पवन कुमार,सम्भल जिलाधिकारी मनीष बंसल,मुख्य वक्ता डॉ पवन कुमार शर्मा,संस्कार भारती के प्रांतीय महामंत्री सुधाकर आशावादी,मंच संचालक डॉ अमिता दुबे आदि ने संयुक्त रूप में किया।अतिथियो ने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम पर विस्तृत चर्चा की साथ उस दौरान हिंदी साहित्य के योगदान पर प्रकाश डाला। काव्य गोष्ठी में वनारस से आये प्रख्यात कवि भूषण त्यागी ने पढ़ा एक मुहिम सक्षम भारत का चला सखे।जिससे भरत वंशीयों का हो भला सखे।हंसते हंसते जो सरहद पर जूझ गए,एक दीप उनकी खातिर भी जला सके।”

मैनपुरी से बलराम श्रीवास्तव ने पढ़ा “जो टूटे लक्ष्य से पहले कभी वृत नहीं होता,अमरता जो न दे पाए वह अमृत नहीं होता। कभी संदेह के बादल न यूं ही मन में तुम लाना,भरत से भाई का चिंतन कभी विकृत नहीं होत।”,नोएडा से हास्य कवि दीपक गुप्ता ने पढ़ा “गालियाँ,ठोकर औ’ ताने क्या नहीं खाना पड़ा।तब कहीं जाकर हमारे पेट में दाना पड़ा,आप मेरी रूह को महसूस ही कब कर सके,आपकी ख़ातिर मुझे ये जिस्म महकाना पड़ा”।प्रयागराज से शायर जयकृष्ण राय’तुषार ने गजल “साक़ी तुम्हारी नज़्म तो महफ़िल की हो गई,जिसमें वतन की बात् थी बिस्मिल की हो गई।उड़ता रहे हवा में या उतरे ज़मीन पर,टहनी हरे दरख्त की हारिल की हो गई’,बदायूं से कवयित्री डॉ.सोनरूपा विशाल ने “ब्याहता है जोश की जो शौर्य से परिणीत है।वो शहादत मौत क्या है ज़िन्दगी की जीत है।मन में गीता के वचन और तन में फौलादी जुनूं,फिर विजय हर जंग में अपनी सदा निर्णीत है”।

मेरठ से कवयित्री डॉ शुभम त्यागी ने सुनाया “शहीदों की चलो मिलकर के कोई बात हो जाए।भले अब दिन निकल जाए भले ही रात हो जाए।कहानी राजा रानी की ना मां हमको सुनाना तुम।कहानी अब शहीदों की नई सौगात हो जाए”।,अयोध्या से जमुना उपाध्याय ने पढा “कैक्टस तो सजाकर वह गुलदान में रखता है।मां बाप को गैरेज या दालान में रखता है।फानूस में रखता है, जुगुनू तो हिफाज़त से,और बूढ़े चिराग़ों को तूफ़ान में रखता है।” कानपुर से पुष्पेंद्र कुमार ने पढ़ा “मुझे दूर कहीं तू ले चल मन,जहाँ मानवता का त्रास न हो,किसी राम को फिर वनवास न हो,हो दिव्य जहाँ का वातावरण”। एवम सफल संचालन कर रहे डॉ सौरभकान्त शर्मा ने पढ़ा “हों राष्ट्रवाद के सब नायक,माँ का भगवा परिधान रहे।और चहुँ दिशाओं में गुंजित यह,वन्देमातरम गान रहे।समवेत स्वर में राष्ट्रगीत की,अधरों पर जब लय होगी।तब देश बनेगा विश्वगुरु,भारत माता की जय होगी”।

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