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मकर संक्रांति को क्यों कहते हैं ‘खिचड़ी पर्व’, जानें इस दिन खिचड़ी और तिल के दान का महत्व

मकर संक्रांति का महापर्व सूर्य (Sun) की साधना और आराधना का महापर्व है. ज्योतिष के अनुसार यदि कुंडली में यदि सूर्यदेव अकेले ही बलवान हों तो वे बाकी सात ग्रहों के दोष को दूर कर देते हैं ऐसे में मकर संक्रा​ति के महापर्व पर भगवान सूर्य की साधना और उनसे संबं​धित चीजों का दान अत्यंत ही कल्याणकारी माना गया है. मकर संक्रांति (Makar Sankranti) के पर्व पर तिल और तेल के साथ खिचड़ी (Khichadi) के दान का भी बहुत महत्व है. मान्यता है कि इस दिन किया गया दान अगले जन्म में सौ गुना पुण्य फल प्रदान करते हुए सुख और सौभाग्य प्रदान करता है. आइए जानते हैं कि आखिर इस महापर्व को खिचड़ी का पर्व क्यों कहते हैं और इस दिन तिल और तेल के साथ खिचड़ी के दान क्या महत्व है.

मकर संक्रांति पर खिचड़ी के दान का महत्व
मकर संक्रांति पर खिचड़ी के दान की महत्ता को कुछ इस तरह से भी समझा सकता है कि इस पावन पर्व को उत्तर भारत में खिचड़ी के नाम से भी जाना जाता है. मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी का दान करने और खाने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है. चावल और काली उड़द की दाल से मिलकर बनने वाली खिचड़ी के दान में काली उड़द शनि संबंधी दोष को दूर करती है, जबकि चावल और जल का संबंध चंद्रमा से होता है जो मनुष्य को अक्षय फल प्रदान करते हैं. वहीं हल्‍दी का संबंध देवगुरु बृहस्पति से और हरी सब्जियों का संबंध बुध ग्रह से होता है. खिचड़ी में पड़ने वाला घी का संबंध प्रत्यक्ष देवता सूर्य से तो घी का संबंध शुक्र ग्रह से होता है. इस तरह देखें तो मकर संक्रांति पर खिचड़ी का दान न सिर्फ धार्मिक दृष्टि से बल्कि ज्योतिषीय दृष्टि से भी बहुत महत्व रखता है.

कैसे हुई मकर संक्रांति पर खिचड़ी बनाने की शुरुआत
मकर संक्रांति के पर्व खिचड़ी बनाकर खाने और लोगों को इसे प्रसाद के रूप में खिलाने की परंपरा का संबंध उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में स्थित गोरखनाथ मंदिर से है, जिसकी शुरुआत कभी वहां पर बाबा गोरखनाथ ने शुरु किया था. मान्यता है कि खिलजी के आक्रमण के समय जब नाथ योगी उनसे संघर्ष कर रहे थे, तब उनके पास अक्सर खाना बनाने का समय नहीं मिलता था. जिसके कारण वे अक्सर भूखे रह जाने के कारण कमजोर होते जा रहे थे. ऐसे में बाबा गोरखनाथ ने इस समस्या का समाधान निकालते हुए योगियों को दाल, चावल और सब्जी को एक साथ पकाने की सलाह दी. शीघ्र ही आसानी से बन जाने वाला यह व्यंजन न सिर्फ स्‍वादिष्‍ट बल्कि त्‍वरित ऊर्जा देने वाला भी होता था. ऐसे में इस व्‍यंजन से नाथ योगियों को भूख की परेशानी से राहत मिल गई और वे खिलजी के आतंक को दूर करने में भी सक्षम हुए.

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तिल और तेल के दान का धार्मिक महत्‍व
मकर संक्रांति पर तिल और तेल के दान को पापनाशक माना गया है. ज्योतिष के अनुसार मकर संक्रांति पर तिल से सूर्यदेव की पूजा करने पर आरोग्य सुख में वृद्धि और तिल के दान से शनि संबंधी सभी दोष दूर होते हैं और सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है. मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन दिया दान अगले जन्म में करोड़ों गुना बड़ा मिलता है. इस दिन तिल का उबटन लगाकर तिल मिश्रित जल से स्नान करना भी शुभ माना गया है. मकर संक्रांति के दिन तिल-गुड़ का न सिर्फ दान बल्कि प्रसाद के रूप में सेवन करने का भी महत्व है.

 

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