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जीवन मंत्र: जब मन में गलत विचार चल रहे होते हैं, तो विद्वान लोग भी गलती करते हैं

डिजिटल डेस्क : कथा – देवर्षि नारद को कामदेव पर विजय प्राप्त करने पर गर्व हुआ। इस गर्व के साथ वे एक सुंदर शहर को देखकर निकल रहे थे। माया नगरी थी। इस शहर को विष्णुजी नारद ने जीके सिखाने के लिए बनवाया था। नारद मुनि को इसकी जानकारी नहीं थी।

माया नगर के राजा का नाम शिलनिधि था। राजा की विश्वमोहिनी नाम की एक बेटी थी। नारद मुनि उस नगर पहुंचे। जब शिलानिधि ने नारद को प्रणाम किया तो वह खुश हो गईं। राजा ने कहा, ‘यह मेरी बेटी विश्वमोहिनी है, मैं उसे आत्मनिर्भर बनाना चाहता हूं और मैं चाहता हूं कि वह त्रिलोकपति जैसे आदमी से शादी करे।’राजा चाहते थे कि नारद जी मेरी बेटी को आशीर्वाद दें, लेकिन नारद जी ने लड़की को देखा और सोचा कि इस सुंदर लड़की से शादी कर ली जाए।

नारदजी ने लड़की का हाथ अपने हाथ में लिया और उसका भविष्य पढ़ने लगे। उनके हाथ की हथेली पर लिखा था कि वह त्रिलोकपति होंगे, लेकिन नारदजी वासना में लीन थे, इसलिए उन्होंने पढ़ा कि वह त्रिलोकपति होंगे जो उनके पति होंगे। यहीं पर नारद जी से गलती हो गई और वह सोचने लगे कि मुझे यह लड़की मिल जाए।जब विश्वमोहिनी स्वधर्मी हुई तो उसने वहाँ नारदजी का अपमान किया।

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पाठ – नारदजी जैसे विद्वान मुनि ने उस कन्या का हाथ देखा और भविष्य नहीं समझा, क्योंकि वह गलत सोच रहा था, उसके मन में वासना जाग उठी। कहानी का संदेश यह है कि जब हमारे अंदर कोई गलत विचार चल रहा होता है तो हम गलती करते हैं, जैसा कि नारद मुनि के मामले में हुआ था। हमेशा याद रखें कि जब भी हम कुछ करना चाहते हैं तो हमारा दिमाग शुद्ध होना चाहिए और हमारा उद्देश्य स्पष्ट होना चाहिए।

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