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जब लोग हम पर ध्यान न दें तो मस्ती-मजाक के साथ बात की शुरुआत करनी चाहिए

कहानी – बनारस विश्व हिन्दू विश्वविद्यालय में विद्यार्थी अपनी मांगों को लेकर थोड़े उग्र हो गए थे और नारेबाजी कर रहे थे। उस समय एक रेक्टर को भेजा गया। रेक्टर थे हजारी प्रसाद द्विवेदी। रेक्टर यानी किसी शिक्षा संस्थान के केंद्र में एक ऐसा पद, जो समस्याओं को सुलझाता है।हजारी प्रसाद जी विद्यार्थियों के बीच पहुंचे और सभी की बातें बहुत शांति से सुन रहे थे, लेकिन कुछ बातें वाजिब नहीं थीं तो वे बोलें कि ये मांगें ही अनुचित हैं।

ये बात सुनते ही छात्र और गुस्सा हो गए, शोर बहुत बढ़ गया, किसी को कुछ सुनाई नहीं दे रहा था। तब हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कहा, ‘मेरी बात सुनो, मैं भी इस संस्थान में हिन्दी का प्रोफेसर हूं। मैं हिन्दी पढ़ाता हूं और ज्योतिष भी जानता हूं। कई चीजें देख भी लेता हूं तो आप सभी मेरी बात भी सुनें।’

शोरगुल खत्म हो गया। सभी उनकी बातें सुनने लगे, लेकिन कुछ देर बाद फिर से शोर होने लगा। द्विवेदी जी को लगा कि अब इन्हें समझाना आसान नहीं है। वे फिर से बोले, ‘आप सभी से मैंने जो बातें कही हैं, जो प्रस्ताव रखा है, उस पर शांति से विचार करें। मैं एक बात और कहूंगा, तुम सभी ने मेरा अपमान तो किया है, मेरी बात भी नहीं सुनी। मेरी बात काटी, खूब शोर किया तो मैं तुम्हें शाप दे रहा हूं। मैं ज्योतिषी हूं, मैं भविष्य पढ़ सकता हूं तो शाप ये है कि तुम सभी अगले जन्म में किसी न किसी विश्वविद्यालय के कुलपति बनोगे।’ये शाप सुनते ही सभी विद्यार्थी हंसने लगे और वातावरण सकारात्मक हो गया। सभी को खुश देखकर द्विवेदी जी समझ गए कि अब इन सभी को अपनी बात समझाई जा सकती है।

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सीख – जब भीड़ में अपनी बात कहनी हो तो हमें अपनी बात इस अंदाज में कहनी चाहिए कि सुनने वाले सभी लोगों को अच्छा लगे और हमारा काम भी हो जाए। बहुत सारे लोगों के बीच बात कहनी हो तो ऐसे शब्दों का उपयोग करें, जिनका असर सभी पर एक साथ हो और हमारी बात भी पूरी हो जाए।

 

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