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धार्मिक भावनाओं का सम्मान करें, भगवान को राजनीति से दूर रखें – सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने तिरुपति प्रसादम विवाद पर आंध्र प्रदेश सरकार से कई कड़े सवाल किए। कोर्ट ने पूछा कि जब यह स्पष्ट नहीं था कि तिरुमाला लड्डू बनाने में मिलावटी घी का इस्तेमाल किया गया था, तो प्रेस में जाने की क्या जरूरत थी ? उसने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कहा कि कम से कम हम यह उम्मीद करते हैं कि भगवान को राजनीति से दूर रखें। आंध्र प्रदेश सरकार ने कहा कि हम जांच कर रहे हैं।

तिरुपति मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस के वी विश्वनाथन की बेंच कर रही है। सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र प्रदेश सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि आपको धार्मिक भावनाओं का सम्मान करने की जरूरत है। इस बात का सबूत कहां है कि यह वही घी था जिसका इस्तेमाल लड्डू बनाने में किया गया ? शीर्ष अदालत का कहना है कि भगवान पर चढ़ाने के बाद प्रसाद बनता है, उससे पहले वह केवल तैयार की हुई मिठाई होती है। ऐसे में भगवान-भक्त का हवाला न दिया जाए, उसको विवाद से दूर रखें।

सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री के बयान पर भी सवाल उठाया। सीएम चंद्रबाबू नायडू के बयान से नाराज शीर्ष अदालत ने पूछा कि जो रिपोर्ट सार्वजनिक हुई है, वो जुलाई की है। लेकिन सीएम इसको लेकर बयान सितंबर में जाकर दे रहे हैं। इस रिपोर्ट को देखकर लगता है कि कथित मिलावट वाला घी लड्डू प्रसाद में इस्तेमाल ही नहीं हुआ था।

कोई ठोस सबूत नहीं है कि मिलावटी घी का हुआ उपयोग

शीर्ष अदालत ने कहा कि प्रथम दृष्टया दिखाने के लिए कोई ठोस सबूत नहीं है कि उसी घी का उपयोग किया गया और खरीदा गया। जांच लंबित रहने पर भी जब जिम्मेदार सार्वजनिक पदाधिकारियों द्वारा ऐसे बयान दिए जाएंगे तो एसआईटी पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा? अगर शिकायतें थीं तो हर टैंकर से सैंपल लेने चाहिए थे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र को जवाब देना चाहिए कि किसकी जांच करनी चाहिए। इस पर एसजी मुकुल रोहतगी ने कहा कि किसी वरिष्ठ अधिकारी को जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा कि आप यह बताएं कि मौजूदा एसआईटी से जांच कराई जाए या अन्य से जांच कराई जाए। अब कोर्ट मामले की अगली सुनवाई गुरुवार यानी 3 अक्टूबर को करेगा।

प्रेस में कैसे दिया बयान – सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि जब सरकार ने जांच के लिए एसआईटी का गठन किया है, तो एसआईटी के किसी नतीजे पर पहुंचने से पहले सीएम को प्रेस में बयान देने की क्या जरूरत थी। संवैधानिक पदों पर मौजूद लोगों से जिम्मेदारी की अपेक्षा की जाती है। अगर आप जांच के नतीजे को लेकर आश्वस्त नहीं थे, तो आपने बयान कैसे दे दिया। अगर आप पहले ही बयान दे रहे है तो फिर इस जांच का क्या मतलब है ?

एसजी तुषार मेहता ने कहा कि ये आस्था का मामला है। इसकी जांच होनी चाहिए कि कौन जिम्मेदार था और किस मकसद से था। इस पर जस्टिस गवई ने कहा हां, बिल्कुल जांच होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम आपके रुख की सराहना करते हैं। हम तो यही चाहेंगे कि आप (एसजी) जांच करें कि क्या जांच इस एसआईटी से कराई जानी चाहिए ? क्या ऐसा बयान देना चाहिए था, जिससे भक्तों की भावनाएं प्रभावित हों ? जब एसआईटी का आदेश दिया गया तो प्रेस में जाने और सार्वजनिक बयान देने की क्या जरूरत थी ?

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